बाल विवाह
प्रदत्त विवाह –बालविवाह
दिनांक 11अप्रेल ,2021
दिन रविवार को विषय के पक्ष में लिखा गया
***
माननीय अध्यक्ष महोदय ,मंचासीन पदाधिकारीगण व उपस्थित निर्णायक मंडल व सहप्रतियोगी मित्रों।
बाल विवाह एक सामाजिक बुराई है तो क्यों ? जबकि भारतीय समाज में विवाह एक पवित्र इकाई के रूप में मान्य है। पूर्वजों ने सामाजिक संस्था परिवार हेतु कुछ नियम बनाये थे जो तत्कालीन शासन व्यवस्था,सामाजिक ढाँचे के अनुरुप थे। दूरदर्शितापूर्ण थे।
माना बाल विवाह में बच्चों के सर्वांगीण विकास पर प्रभाव पड़ता है। कच्चे घड़े में पानी भरने पर फूट जाता है। परंतु यहाँ कुछ तथ्यों पर इशारा करना चाहूँगी। कहते हैं कोरी स्लेट पर जो भी लिखा जाता है ,साफ और स्पष्ट नज़र आता है। कच्ची -गीली मिट्टी को जिस आकार में ढ़ालना चाहो ,ढ़ाल सकते हैं।
नाबालिक विवाह की कुछ खूबियाँ भी हैं जो कोरी स्लेट और गीली मिट्टी जैसी असरदार हैं।
एक समय था जिन भावनाओं और संवेग व संवेदनशीलता से परिचय सत्रह -अठारह की वय में होता था आज वह महज दस -बारह साल के बच्चों को आसानी से प्राप्त होने के कारण वह समय से पूर्व परिपक्व हो रहे हैं।
यौनेच्छाओं को (अधकचरी जानकारी के चलते )रोकना या लगाम लगाना अब मुमकिन नहीं।अतः यौन अपराध में होती वृद्धि में नाबालिक ,किशोर का लिप्त होना आज आश्चर्य नहीं।
#विचारणीय तथ्य है कि एक तरफ बाल विवाह कानूनन अपराध है और दूसरी तरफ बलात्कार जैसे घृणित कर्म को अंजामदेने वाला 14- से16 वर्ष तक का बालक नाबालिग !!
बचपन से ही परिवार के मध्य पलती -बढ़ती बेटियाँ सामंजस्य रखना सीख जाती है। घरेलु काम के प्रति रुझान ,रिश्तों -नातों, संबंधों को सहज भाव से अपनाना, किसके साथ कैसा व्यवहार स्वतः सीख जाते थे।।इसी सीखने की प्रक्रिया में जो विकास होता , वह ठोस यानि संपूर्ण होता है। सही -गलत समझते अपने अनुभवों से तब गढ़ते है स्वयं को ।
आज जब कि परिपक्व उम्र में रिश्ते सामंजस्य न बैठने पर तलाक तक पहुँच जाते हैं,नाबालिग मस्तिष्क अपनत्व से परिपूर्ण उन रिश्तों को सहजता से बिना मान,अभिमान के निभा लेता है। सीरियल बालिका वधू में भी दोनों पक्षों को लेकर कोशिश की गयी थी ।जहाँ इस बाल विवाह से जुड़े सकारात्मक प्रसंग भले ही कम थे पर प्रभावित करते हैं। ,लाख कमियों,परेशानियों के बाद भी वह उसका घर था जहाँ वह सुरक्षित महसूस करती थी। फिसलने की उम्र आते आते उनका सहज आकर्षण और लगाव जीवन साथी की तरफ हो जाता था। माहौल के अनुसार स्वयं में बहते पानी की तरह त्याग ,समर्पण ,और अपनत्व जैसे गुण सहज स्वयं ही आ जाते थे ।
विचारणीय है कि बाल विवाह कहते समय केवल लड़कियों की ही तस्वीर सामने आती है ..असर तो बाल मन के लड़के पर भी पड़ता है ।उस ओर दृष्टि क्यों नहीं जाती?
,बचपन में हुये विवाह वृद्ध पीढ़ी के रुप में हमारे सामने हैं ।और तमाम अव्यवस्थाओं के बीच भी उनका आपसी सामंजस्य किसी भी आइने की तरह है।वहीं आज युवा विवाह की तमाम विकृतियाँ सामने हैं और उसी का परिणाम एकल परिवार के रूप में हैं।
तमाम बुराइयों के साथ बाल विवाह का सकारात्मक पक्ष भी है
उजला -काला पक्ष सदैव विद्यमान रहा है अतः उजले पक्ष को देखते हुये काले पक्षपर भी दृष्टिपात करना जरुरी है।
अब मैं अपने शब्दों को विराम देती हूँ।
मनोरमा जैन पाखी
मौलिक चिंतन ,स्वरचित