बाल कहानी
परोपकार का फल
एक गाँव में एक विधवा स्त्री अपने पुत्र के साथ रहती थी। बहुत गरीब थी।इस कारण अपने पुत्र को पढ़ाना तो दूर ढंग का भोजन भी नहीं दे पाती थी।अक्सर भूखे पेट सोना पड़ता था।
आखिर एक दिन उसने पुत्र से कहा “बेटा,गाँव में बड़े बड़े व्यापारी आते हैं।तू जरा बाजार जा और अपनी गरीबी दूर करने का उपाय पूछ के आ।”
भोला पुत्र बाजार गया।दुकानदारों, सौदागरों,ग्राहकों सब से पूछता पर किसी ने कुछ न बताया।निराश होकर लौटने ही वाला था तभी एक व्यापारी ने उसे बताया कि इस गाँव से उत्तर दिशा की तरफ पचास कि.मी.दूर एक महात्मा रहते ह़ै।शायद वह कुछ उपाय बता दें।
घर आकर उसने माँ को बताया। माँ ने कहा कि पचास कि. मी. तो बहुत दूर है तू कैसे जाएगा? मैं ही जाती हूँ।
पर बेटा अपनी माँ को कष्ट में नहीं देख सकता था। अतः बोला तू चिंता मत कर ।मैं कैसे भी चला जाऊँगा ।बस तू अपना ध्यान रखना और मेरे लौटने की प्रतीक्षा करना।उदास मन से माँ ने एक उम्मीद के सहारे हाँ कर दी ।और उसे आशीर्वाद दिया।आसपास से कुछ चावल लाई और पका कर रास्ते के लिए साथ दे दिये।
खुशी खुशी चलता वह पास के गाँव पहुँचा तब तक शाम हो चुकी थी। वह गाँव में एक हवेली देख उसके बाहर रात गुजारी।सुबह चलने को हुआ तो सेठानी ने उससे पूछा वह कौन है और यहाँ उसकी हवेली के बरामदे में क्यों सोया था?
उसने सब बात बताई तो सेठानी बोली कि मेरा भी एक सवाल पूछ लेना कि मेरी बेटी कब बोलेगी?उसने प्रश्न ध्यान से सुना और आगे बढ़ा। रास्ते में छोटा सा जंगल मिला जिसे पार करते हुये एक साधू मिले।उसने चरण स्पर्श किये ।बातचीत हुई तो साधू ने भी अपनी जिज्ञासा उसके सामने रख दी कि उन महात्मा से पूछ आना कि मुझे पचास वर्ष हो गये साधू बने लेकिन साधूपन अभी तक नहीं आया।
उसने यह बात भी याद कर ली और आगे बढ़ा ।महात्मा के पास पहुँचने से पूर्व वह एक बाग देख रुक गया।धूप भी बहुत तेज थी। एक वृक्ष के नीचे सुस्ताने लगा।तभी माली आया उसे वहाँ देख सवाल -जबाव करने लगा।उसने सब कुछ सही सही बता दिया ।तो माली ने उसे ताजे फल खाने को दिये और बोला कि बेटे मेरा भी एक प्रश्न पूछ लेना कि जिस पेड़ के नीचे तुम बैठे हो उसके आसपास अन्य कोई भी वृक्ष जड़ क्यों नहीं पकड़ रहा। लड़के ने ध्यान से सुना और आगे बढ़ गया।
सौ -दो सौ कदम की दूरी पर एक कुटिया बनी हुई थी। पक्षी निर्बाध विचरण कर रहे थे।वातावरण शांत था।
लड़का कुटिया के अंदर पहुँचा। वहाँ बैठे महात्मा जी को प्रणाम किया और अपने आने का कारण बताया।
महात्मा ने कहा मैं इस समय केवल तीन प्रश्नों के ही उत्तर दे सकता हूँ ।पूछो।
लड़के ने सोचा फिर माली ,साधू और सेठानी के प्रश्न बता दिये। अपनी माँ का सवाल नहीं बताया।
महात्मा ने कहा कि माली को कहना कि वृक्ष के चारों तरफ मोहरों से भरे स्वर्ण कलश दबे हैं।जब तक कलश नहीं हटेंगे कोई भी वृक्ष जड़ नहीं पकड़ेगा।साधू कोकहना कि उनकी जटा में रतन है ,जब तक वह रहेगा साधुत्व नहीं आएगा।।सेठानी को बोलना कि जैसे ही उसकी लड़की अपने पति का मुख देखेगी ,बोलने लगेगी।
लड़के ने प्रणाम किया और वापिस लौट पड़ा।
माली से मिलकर उसे कलशों की बात बताई तो माली ने तुरंत खोदना शुरू किया। चार कलश मिले।माली ने उसका उपकार मानते हुये एक कलश उसे दिया।कलश लेकर वह आगे बढ़ा तो साधू को जटा में रतन की बात बताई।साधु ने तुरंत जटा खोली।रतन देख कर बोला बच्चे तुम उपकारी हो।यह रतन मेरे किसी काम का नहीं।यह तुम रखो।
लड़का रतन लेकर आगे बढ़ा।सेठानी के गाँव पहुँचा ।सेठानी को उपाय बताया और वहाँ से चलने ही वाला था कि सेठानी की लड़की वहाँ आ गयी।और पूछने लगी कि वह कौन है और क्यों आया है?सेठानी ने उसे बोलते सुना तो प्रसन्न हो गयी। बोली ,बेटे अब तुम मेरी बेटी के पति हो तो ऐसे तो नहीं जाने दूँगी।
उसने आवभगत करते हुये रात्रि में विश्राम कराया और दूसरे दिन बेटी के साथ विवाह कर विदा किया।लाखों के धन के साथ रथ में बैठ लड़का घर आया।
माँ ने विह्वल हो पूछा,बेटा ,महात्मा मिले?कुछ बताया उन्होंने?
बेटा बोला ,माँ ,तेरे आशीर्वाद से लाखों का धन भी मिला और तेरी बहू भी मिल गयी।उसने सारी बात बताई। माँ हर्षविभोर हो गयी।गरीबी दूर हो गयी और सब जरुरी सुविधाएं भी घर में हो गयी।
शिक्षा–इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने स्वार्थ को छोड़ कर दूसरों का भला करना चाहिये।जो दूसरों का भला करते हैं उनका भला अपने आप हो जाता है।
पाखी