बाल कहानी – सुन्दर संदेश
बाल कहानी- सुन्दर संदेश
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(शनि और राहुल आपस में बातचीत कर रहे हैं।)
शनि-,”मुझे याद है, जब मैं पिछली बार छुट्टियों में दादी के घर गया था तब दादी ने मुझे बहुत अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनायी थीं। इस बार भी मैं छुट्टियों में अम्मी-पापा के साथ दादी से मिलने जाऊँगा।”
राहुल-,”हाँ.. हाँ.. (हँसते हुए) तुमने क्या कहा? फिर से कहो.. क्या तुम छुट्टियों में दादी के पास जाते हो?”
शनि-,”हाँ..पर इसमे हँसने वाली क्या बात है?”
राहुल- सॉरी दोस्त! पर मुझे हँसी आ गयी क्योंकि दादी के घर घूमने के लिये छुट्टियों का इन्तजार क्यों? मुझे देखो, जब मन करता है, घूम आता हूँ। कभी दादी के घर, कभी नानी के घर। हफ्तों रहता हूँ और फिर वापस आकर स्कूल जाने लगता हूँ।”
शनि-,”पर इस तरह जाने से स्कूल समय से नहीं जा पाऊँगा इसलिए छुट्टियों में ही दादी या नानी के घर जा पाता हूँ।”
राहुल-,”कुछ दिन अपनों से मिलने में कोई नुकसान नहीं है।तुम अपनों से प्यार नहीं करते इसलिए नहीं जाते हो। मैं तो नाना-नानी, दादा-दादी, चाचा-चाची, और सभी जो मेरे अपने हैं, बहुत प्यार करता हूँ और सभी लोग मुझसे इसलिए मैं बहुत घूमता हूँ। कभी ननिहाल और कभी ददिहाल में।”
शनि -,”मैं भी अपनों से बहुत प्यार करता हूँ। अगर मैं पढ़-लिखकर अच्छा इन्सान बनकर अपने पैरों पर खड़ा हो गया तो मेरे अपने बहुत खुश होंगे। अपनों की खुशी में ही मेरी खुशी है।”
राहुल-,”पर ये बताओ! सभी तो पढ़ते है। मेरे एक अकेले न पढ़ने से क्या होगा?”
शनि-,”मुझे याद है। टीचर ने बताया था कि एक व्यक्ति से परिवार जुड़ा होता है, परिवार से समाज और समाज से देश जुड़ा होता है। हम पढ़-लिखकर ही अपने देश का मान बढ़ा सकते हैं।”
राहुल-,”मित्र! तुमने मेरी आँखें खोल दी, अब मैं समय से विद्यालय जाऊँगा। पढ़-लिखकर अपनों की और अपने प्यारे देश की सेवा करुँगा।”
शिक्षा
हम पढ़-लिखकर ही संस्कारवान और समृद्धिशाली बन सकते हैं।
शमा परवीन
बहराइच (उ० प्र०)