बाल कहानी- डर
बालकहानी- डर
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प्राथमिक विद्यालय में पूजा नाम की होनहार छात्रा कक्षा पाँच में पढ़ती थी। वह पढ़ने लिखने में अच्छी थी, परन्तु उसकी एक बहुत बड़ी कमी थी, वह प्रतियोगिता के नाम पर परेशान हो जाती थी। पूजा वैसे तो विद्यालय में अनुपस्थित नहीं रहती थी,परन्तु टेस्ट या प्रतियोगिता की सूचना मिलते ही विद्यालय नहीं जाती थी।
सोमवार का दिन था। पूजा खुशी-खुशी विद्यालय गयी, परन्तु जैसे ही उसे पता चला कि कल हिन्दी में टेस्ट है, वह हर बार की तरह विद्यालय नहीं गयी।
बुधवार को जब पूजा विद्यालय पहुँची तो अध्यापिका ने बहुत प्यार से पूजा को अपने पास बुलाया और टेस्ट में अनुपस्थित होने का कारण पूछा। पूजा ने बताया-, “मैम! जी मुझे टेस्ट और प्रतियोगिता के नाम से बहुत घबराहट होती है। कहीं हम असफल न हो जाये, इसकी चिन्ता रहती है।”
अध्यापिका ने पूजा का डर दूर करने में उसकी मदद की और पूजा से टेस्ट ले लिया।
पूजा को पहले घबराहट हुई, फिर पूजा ने अपने डर पर काबू पाया।
और अखिरकार पूजा हिन्दी के टेस्ट में सफ़ल हो गयी। पूजा की लगन और मेहनत देख कर अध्यापिका ने पूजा को इनाम दिया। पूजा इनाम पाकर बहुत खुश हुई। उसका हौसला बढ़ा। अब पूजा को टेस्ट और प्रतियोगिता के नाम पर डर नहीं लगता बल्कि पूजा को टेस्ट और प्रतियोगिता का इन्तजार रहता है कि कैसे वह टेस्ट और प्रतियोगिता में सफल हो और अध्यापिका द्वारा उसे इनाम और प्रोत्साहन मिले।
शिक्षा
हमें जीवन में कभी भी किसी भी प्रकार की चुनौतियों से घबराना नहीं चाहिए।
शमा परवीन बहराइच, उत्तर प्रदेश