बाल कविता –
बाल कविता –
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छोटे छोटे घर हैं अब तो
खेलने को नहीं स्थान रहा |
बचपन कैद हो गया घर में
बस टीवी व मोबाइल सजा |
नहीं देखना हमको टीवी
मोबाइल से मन है ऊबा |
अब तो हम सबको दादाजी
पार्क घुमाने ले चलो जरा |
वहाँ खेलकर हम सब बच्चे
थोडा़ कर लें मौज मस्ती |
झूला झूलेंगे खेलेंगे खूब
दूर आलस होगा सच्ची |
पेड़ों की स्वच्छ हवा देखो
स्वास्थ्य अच्छा बनाती है ।
पशु पक्षियों की मीठी बोली
हृदय को कितना लुभाती है।
मौलिक सृजन
पूनम दीक्षित
कृष्णा विहार कॉलोनी
ज्वाला नगर रामपुर
उत्तर प्रदेश