बाल्टी और मग
“बाल्टी और मग”
‘बाल्टी’ और ‘मग’ को, खुद को घूरता हुआ पाता था,
जब भी वाशरूम मैं जाता था.
कारण…
मैं बाल्टी-मग से नहीं, हमेशा शावर में ही नहाता था.
लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मेरा बाल्टी-मग से कोई नाता न था.
फिर एक दिन यूं ही खयाल आया…
ये दोनों साथ रह कर भी कितने अलग हैं,
रिश्ता इन दोनो का फिर भी सघन हैं,
‘बाल्टी’ खाली हो तो ‘मग’ को उदासी होती है,
‘मग’ न हो पास तो अपनी निष्क्रियता ‘बाल्टी’ को सताती है.
भले ही दोनों अपने आप में पूरे-सूरे हैं,
इक दूजे बिन दोनों कितने अधूरे हैं.
‘बाल्टी’ भर जाती जब, ‘मग’ उसको खाली करता है,
एक संगीतमई सरगम सा नाता आपस में इनका बनता है.
गर कोई छिद्र, कोई दरार हो जाती किसी एक में, निष्काम ये हो जाते हैं,
भरते कम… रिसाव से ये दोनों निष्क्रिय कहलाते हैं.
हम सब भी तो आपस में कोई ‘बाल्टी’ कोई ‘मग’ हैं,
इक दूजे बिन कहां हम जिंदगी में पूरक नग हैं,
गर तुम ‘बाल्टी’ हो तो,
तुम्हें भी एक ‘मग’ की सदा जरूरत होती है,
गर तुम ‘मग’ हो तो ‘बाल्टी’ तुमसे अपेक्षित है,
मन उदास हो, खुश हो, परेशान हो तो…
हम खोजते किसी ‘मग’ रूपी संगी को,
और कभी खुद ‘मग’ बन… देते साथ किसी ‘बाल्टी’ रूपी साथी को !
दूसरों के मन की मनोभाव को खाली करने, सुनने का, सहारा देने, भरने के लिए,
कभी ‘बाल्टी’ कभी ‘मग’ बनते हैं हम सभी,
सच कहता है ‘हरकीरत’…
‘बाल्टी’ और ‘मग’ की जरूरत दुनिया में खत्म न होगी कभी,
‘बाल्टी’ और ‘मग’ की जरूरत दुनिया में खत्म न होगी कभी !!!
कार्तिक नितिन शर्मा