बालिके
दोहे
सृष्टि कारिणी बालिके , तेरे अनेक नाम
तुम ही दुर्गा रूपा हो,भजते नित सुब्हो शाम
सती रूप नारायणी , तुम काली अवतार
सृजन प्रलय को धरो तुम,कर दुष्ट का संहार
बनी योजना अनेको , करने को उत्थान
बढ़कर आगे बालिका , बढ़ा रही है मान
करे जगत कल्याण जो, बोझ उसे मत मान
आन बान परिवार की , घर की लक्ष्मी जान
रोशन रखती जहाँ में , दोनों ही परिवार
पूजी जाये नारि जब , देवत्व जाये हार