बारिश के पर्यावरणीय दोहे
बरसो बरखा झूम के, अगन जलन कर दूर।
हरीभरी धरती करो, फसल करो भरपूर।1।
घुमड़ घुमड़ कर कह रही, बादल की बौछार।
आने को तैयार है, सावन का त्यौहार।2।
आई है बरसात तो, खूब लगावो पेड़।
गर्मी का उपचार हो, हरीभरी कर मेड़।3।
बारिश के कारण मिली, बच्चों को अवकाश।
भींग भींग कर कर रहे, बारिश का अहसास।4।
रिमझिम रिमझिम हो रही, सावन सी बरसात।
नाचें मन की मोरनी, झूम झूम दिन रात।5।
यूँ बरसो बरसात जूं, मानवता की थाल।
जन धन की रक्षा करो, नहीं काल का गाल।6।
सदा सहायक ही रही, हरती नित संताप।
मानव स्वारथ ही वजह, धरती करे विलाप।7।
समय संभलने का अभी, पेड़ लगाओ खूब।
बाढ़ों से रक्षा तभी, वरना जाओ डूब।8।
पेड़ लगालो पेड़ ही, धरती का भगवान।
पानी बहने से रुके, करता वही निदान।9।
अभी समय सोओ नहीं, रखो कुदाली हाथ।
रोपण पौधों का करो, हिलमिलकर सब साथ ।10।
अभी लगालो पौध तुम, समय बड़ा अनुकूल।
वक्त मिलेगा फिर नहीं, दिन आये प्रतिकूल।11।
कुंआ तुम खोदो नहीं, जब घर भर में आग।
पेड़ लगा लो आज अभी, फिर सुधरेंगे भाग।12।
-साहेबलाल ‘सरल’