“बारिश की पहली बूँद”
“माँ! तुम भी न, जब देखो तब डाँटती रहती हो” स्नेहा पैर पटकते हुये अपने कमरे में चली गयी। वैदेही यह देखकर अचम्भित हो उठी।आखिर उसने ऐसा क्या कह दिया जो उसकी बेटी स्नेहा इस तरह प्रतिक्रिया दे रही है।बस इतना ही तो कहा कि “तुम अभी छोटी हो ।अकेले मित्रों के साथ घूमने जाना ठीक नहीं है।” ऐसा नहीं कि ऐसा पहली बार हुआ किन्तु स्नेहा का विरोध – स्वर पहले से मुखर था। वैदेही अपनी पूरी बात समझा भी नहीं पायी थी कि स्नेहा नाराज हो गयी। माँ के लिये अपनी 13 वर्षीय बेटी स्नेहा को समझाना इतना कठिन होगा ऐसा वैदेही ने कभी सोचा भी नहीं था।
स्नेहा घर की अकेली संतान होने के कारण बहुत लाड़ में पली थी। पिता देव एक साधारण सी प्राइवेट नौकरी में होते हुये भी घर की सभी जरूरतों को बखूबी पूरा करते। और वैदेही बड़े प्यार से अपने घर को सवाँरने में अथक परिश्रम करती। किन्तु आज की घटना ने वैदेही को विचलित कर दिया और वह देव से बात करने को मजबूर हो गयी। आँफिस से आते ही वैदेही ने देव से बात की। थका हुआ होने के बावजूद देव ने पूरी बात बहुत ध्यान से सुनी और मुस्कुराने लगे। वैदेही की चिन्ता को समझते हुये बड़े प्यार से हाथ में हाथ लेकर बोले ” ये समय का परिवर्तन है, मौसम बदल रहा है। तुम जिम्मेदार और परिपक्व हो रही हो। तुम युवा से प्रौढ़ और स्नेहा बच्ची से किशोर। ये सब कुछ शरीर और मन का बदलाव ही नही बल्कि पूरी की पूरी पीढ़ी का बदलाव है।खुद को समझने के साथ -साथ स्नेहा की पीढ़ी को समझने की कोशिश करो। सब कुछ आसान हो जायेगा। अपने परवरिश पर विश्वास करना सीखो। ये बारिश की पहली बूँद है। इसकी सोंधी सी सुगंध को अपने आँचल में समेट लो। स्नेहा बिलकुल तुम्हारी तरह है , तुम्हारा प्रतिबिंब है।उसका हाथ थामों और पूरी बारिश में भिगो दो। उसे अपने पंखों से उड़ने दो और आसमान चूमने दो।” वैदेही बड़े ही विस्मय से देव को देखती रही और उसके स्नेह भरे बारिश की बूदों की सोंधी- सोंधी खुशबू में डूब गयी।
©डा·निधि…