बारहखड़ी
बारहखड़ी
अच्छे बालक बनना है तो,
आदत अच्छी तुम अपनाओ ।
इसकी उसकी बात करो मत ,
ईश्वर को तुम शीश नवाओ ।
उठकर सुबह सवेरे बच्चो,
ऊल – जलूल करो मत काम।
एक हाथ से ब्रश को पकड़ो,
ऐसे साफ करो तुम दांत ।
ओम -ओम का करो जाप तुम ,
और बड़ों के छूओ पैर ।
अंमा को तुम गले लगाओ,
अः बाग की कर लो सैर।
कस लो कमर निकल दिन आया,
खाओ फल कुछ दूध पियो।
गलती से भी बुरा ना बोलो ,
घर बाहर हर ओर अहो।
चलो पहुंच अब शाला जाओ ।
छल प्रपंच को दूर भगाओ।
जन – गण – मन का मान बढ़ाओ ,
झंडे का वंदन करवाओ।
ट्यूशन का हो काम नहीं ,
ठगे जाओ तुम कभी नहीं।
डगर – डगर मुश्किल गर आए ,
ढाढस खोना कभी नहीं।
तुमसे है यह देश खड़ा ,
थम न जाना करो बड़ा।
दया प्रेम करुणा सरसे ,
धन बन जाए नहीं बड़ा।
नहीं स्वार्थ का संबल हो ,
परमारथ का ही बल हो।
फल की इच्छा करो नहीं ,
बस कर्मों का मर्म यही।
भक्ति भाव मन में उपजे ,
मन सुंदर सा दर्पण हो।
यहीं स्वर्ग है नर्क यहीं,
राग द्वेष का तर्पण हो।
लघुता से प्रभुता मिलती ,
वंचित चाहे जीवन हो ।
शब्द शक्ति को पहचानो ,
षडयंत्रों का खंडन हो।
समय बहुत बल शाली है,
हमको सदा सीख देता।
क्षत्रप हो या रंक खड़ा ,
त्रस्त सभी को कर देता।
ज्ञानी वे ही सच्चे हैं ,
श्रम को जिनसे मान मिला।
ङ ञ ण ऋ अक्षर भी,
ढ़ ड़ को भी प्यार मिला।
तुम भी सही बात समझो,
बारहखड़ी अभी पढ़ लो।
इंदु पाराशर