बाबुल (भाग-२)
गतांक से आगे
#बाबुल ( कहानी – भाग -२) मार्गदर्शन अपेक्षित
अविनाश को उदास देख सुभाष को समझते देर न लगी कि आज फिर बेटी से फोन पर बिटिया से क्या बात हुई होगी। जरुर बिटिया दुख में होगी जिस कारण अविनाश का हमेशा खिला – खिला रहने वाला चेहरा आज फिर से मुर्झा गया है। दोस्त होने के नाते सुभाष ने सोचा चलो किसी तरह अविनाश की वर्तमान मन: स्थिति को उदासी के दलदल से बाहर निकालते हैं।
सुभाष बिना समय बर्बाद किए अविनाश के समीप आकर उससे सटकर बैठ गया।
क्यों दोस्त, क्या समाचार हैं? बड़े उदास लग रहे हो आज आप, आखिर ऐसा क्या हो गया जो उदासीनता के इस सुर्ख सफेद चादर में खुद को लपेट रखें हो?
सुभाष और अविनाश मे घनिष्ठ मित्रता थी । अविनाश जब पहली बार महानगर आया था तब से लेकर अबतक दोनों एक साथ एक ही फैक्ट्री में कार्यरत हैं। वैसे तो सुभाष अविनाश को इसी महानगर में मिला था परन्तु दोनों के विचार प्रारंभ से ही ऐसे मिले की दोनों घनिष्ठ मित्र बन गये। समय के साथ यह मित्रता हर एक कसौटी पर खरी उतरती हुई और प्रगाढ़ होती चली गई। दोनों ही नित्य प्रतिदिन एक दूसरे को अपना सुख – दुख बताते, आड़े वक्त में एक दूसरे के काम आते।
सुभाष अविनाश के बारे में लगभग हर एक बात जानता था किन्तु विगत कुछएक वर्षों से उसके मन में भी एक प्रश्न कुलांचे मार रहे थे। उसे पता था कि अविनाश को दो लड़के हैं ” अहान और विहान , परन्तु अविनाश को एक बेटी भी है और वो भी शादीशुदा हैं इस बात से वह सर्वथा अनभिज्ञ था लेकिन जब से वह अपने मित्र को बिटिया के लिए चिंतित देखने लगा है और हरबार उससे यह प्रश्न करना चाहता है आखिर तुम्हारी लड़की कब हुई और इतनी बड़ी कैसे हो गयी? किन्तु संकोचवश पूछ नहीं पाता था।
पर आज सुभाष का मन नहीं माना और वह पूछ बैठा,
मित्र एक बात बताओगे?
अविनाश:- पूछो! क्या पूछना चाहते हो?
भाई तुम्हारे तो सिर्फ दो बेटे ही हैं, तो फिर यह लड़की —? उसने बात अधुरी छोड़ दी।
सुभाष के मुख से निकले इस प्रश्न को सुनकर कुछ पल अविनाश शान्त हुआ लेकिन वह पल उसके मानसपटल पर चलचित्र की भांति चलने लगे।
सेजल पहली बार अविनाश के गोद में आकर सकुचाते हुए आराम से बैठी और उसे देखते हुए बड़े ही प्यार से बोली, आप मेरे मौसा जी हैं न? अविनाश को ऐसा लगा जैसे उसकी आँखें उसके मुखारविंद से प्रस्फुटित उन कुछ शब्दों एवं प्रथम दृष्ट्या अविनाश के चेहरे के बीच स्थापित हो चुके सम्बन्ध की सत्यता को परखने का प्रयास कर रहे हों।
क्रमशः
संजीव शुक्ल ‘सचिन’संजीव शुक्ल ‘सचिन’