बाबाओं का भंडाफोड़ (डर रहित भक्ति की ओर)
पापाजी कथा देख रहे थे। बोले ये कथावाचक तो जबरदस्त है। टीवी स्क्रीन पर फ़्लैश हो रहे नंबर पर कॉल लगाया। बोले जी कथा करवानी है कितना खर्चा आ जायेगा। पापाजी ने जब मुझे बताया तो मैं दंग था। आप भी सुनेंगे? तो सुनिये कीमत थी ’15 लाख’।
सुनकर मैं अंदर तक हिल गया। आखिर भगवान् की कथा इतनी महंगी कैसे हो गयी। मतलब साफ था अगर कोई आदमी ग़रीब हो तो वह कथा करवाने का बिलकुल हकदार नहीं हैं। इसके लिए उसे अमीर होना पड़ेगा। जजमान बनना पड़ेगा। कैसा ढोंग है ये? कैसा पाखंड है? ये चल क्या रहा है? क्या भक्ति आजकल इतनी महंगी है?
आस्था रखना अच्छी चीज है। इससे बराबर ताकत मिलती रहती है। लेकिन आज समाज के इन धार्मिक ढोंगियों पर फिर लिखना चाहता हूँ। अभी भी समय है कृपया सम्भल जाये। नहीं तो आप आजीवन भ्रमित होकर जीते रहेंगे। जरा समझिये मेरी बात को जब आप किसी कथावाचक के पास कथा सुनने जाते है – जहाँ हज़ारों लाखों की भीड़ जुटी होती है – सोचिये आप वहां क्यों जाते है? भगवान् को पाने के लिए। सही बात हैं। तब तक सही बात है जब आप भगवान् की कथा सुनकर भगवान् के बारे में सोचते है। लेकिन यह क्या ? कुछ दिनों बाद आप भगवान् को भूलकर कथावाचक को ही भगवान् मान बैठते है, उसे ही कृष्ण और राम मान बैठते है। बस यहाँ मुझे बुरा लग जाता हैं। मैं पूछता हूँ आप स्कूल क्यों जाते है? आप कहेंगे शिक्षा प्राप्त करने के लिए। तो जब आप पढाई कर बाहर निकलते है तो अपने मास्टर की फ़ोटो की सुबह-शाम आरती तो नहीं करते है? हां , गुरु है तो उनका सम्मान जरुरी है, लेकिन सिर्फ उन्हीं को तो लक्ष्य नहीं बना लेते है। बिलकुल नहीं। आप उन्हें याद जरूर करते है लेकिन आजीवन विद्या ही आपके साथ रहती है। यह वही चीज़ है जिसके लिए आप स्कूल गये थे। गुरूजी की फोटो के आगे हाथ जोड़ने से तो पढाई नहीं आएगी ना, आएगी तो अपने गहन अध्ययन से। गुरु बस एक माध्यम हैं।
मैं यही बात समझाना चाहता हूँ की आप पाने गये थे भगवान् को, और पूजने लगे इन गुरुओं को। इन्ही को ही आप भगवान् समझ बैठे। तब तक इनसे लेते रहो, जब तक ईश्वर प्राप्ति का मार्ग ये बताते रहे। लेकिन जैसे ही आपको लगे की आप इनके प्रभाव में आ रहे हो, और मूल विषय से भटक रहे हो, तुरंत इनको छोड़ दीजिए।
मैं आशाराम, रामरहीम, नित्यानंद, रामपाल इन सबके उदाहरण बिलकुल नहीं देना चाहता क्योंकि आप निसंदेह कहेंगे कि सारे एक जैसे नहीं होते। आप सही हैं। लेकिन मेरे विषय को पकड़िये। यहाँ एक ऐसे प्रभाव की बात हो रही है जो आपको इन गुरुओं की फ़ोटो घर में रखने को विवश कर देता हैं।
अगर आज मेरी बात आपको ठक से दिल पर लगी हो तो छोड़िए इन्हें भगवान् मानना। ज्ञान जरूर लीजिये, कथा जरूर सुनिये, भजन जरूर सुनिये लेकिन जिसकी कथा सुन रहे हो भगवान् सिर्फ वही हैं। जैसे ही आपको लगे की आप इनकी जकड़ में आ रहे है, तुरंत इनको छोड़ खुद प्रभु को सुमरिये।
भगवान् सिर्फ भावना के भूखें है, प्यार के भूखे है। हर इंसान में ख़ुद भगवान् हैं। इन गुरुघंटालों के पास क्यों अपने दुखी आत्मा होने के सबूत को आप पक्का करते हो। अरे आप तो स्वयं पूर्ण हो, अनंत हो, ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ हो। फिर डरते क्यों हो? जब कोई दुःख आये तुम सीधे उस व्यवस्था को पुकारों.. राम को पुकारों..कृष्ण को पुकारों.. भावना सच्ची है तो वो कभी हमारी रक्षा करने से नही चूकते। तो आज से छोड़िए इन अत्याधुनिक, टेकनीक से लैस, गुरुघंटालों का साथ.. और जपिये मुक्त होकर सिर्फ अपने भगवान को…
जय श्री राम?
#नीरज_चौहान लिखित