Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Nov 2023 · 1 min read

बाप

परिवार की उम्मीदें,जिम्मेदारियों का बोझ
और बदन में बेतहाशा थकान लगती है।
वो पुराने लिबास, इन बालों की सफेदी
झुलसे चेहरे में हल्की मुस्कान लगती है।
बाप की नजरो से, जरा जिन्दगी तो देखों,
कितनी मुश्किल है फिर भी,आसान लगती है।
@साहित्य गौरव

लौट कर वो आए जब शाम को घर,
तब जरुरत का जरूरी समान लगती है।
दिनभर की मेहनत इनकी खुशियों के आगे
बीवी बच्चों से थोड़ी अनजान लगती है।
बाप की नजरो से,यूं जिन्दगी तो देखों,
मुश्किल है फिर भी,आसान लगती है।

थी छोटी सी फिर भी ये घास की कुटिया
इसके कमाने से पक्का मकान लगती है,
हो बेशक भले इन दीवारों में रंग सस्ते,
पर दीवारों की रंगत,आलीशान लगती है।
बाप की नजरो से,यूं जिन्दगी तो देखों,
मुश्किल है फिर भी,आसान लगती है।

पुरजोश है वो अब भी इस ढलती उमर में,
उसके हाथों की ताकत,नौजवान लगती है।
खुद की फिकर अब उसे होती कहां है,
नर्म तबियत भी उसकी सख्त जान लगती है।
बाप की नजरो से, यूं जिन्दगी तो देखों,
मुश्किल है फिर भी,आसान लगती है।

आज बदलते वक्त की ये बदलती जरूरतें
कल भविष्य का बेहतर अनुमान लगती है,
खुद ही बनाएं,अपनी तकदीर जो खुद से,
मेहनतकश आदमी की पहचान लगती है।
आदमी की नजरो से, यूं जिन्दगी तो देखों,
बाप है फिर भी,आसान लगती है।
@साहित्य गौरव

4 Likes · 135 Views

You may also like these posts

रुकता समय
रुकता समय
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
उलझी हुई जुल्फों में ही कितने उलझ गए।
उलझी हुई जुल्फों में ही कितने उलझ गए।
सत्य कुमार प्रेमी
नास्तिक किसे कहते हैं...
नास्तिक किसे कहते हैं...
ओंकार मिश्र
कलियुग में अवतार
कलियुग में अवतार
RAMESH SHARMA
तेरे दिल तक
तेरे दिल तक
Surinder blackpen
पहाड़ की होली
पहाड़ की होली
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
रोशनी और कुदरत की सोच रखते हैं।
रोशनी और कुदरत की सोच रखते हैं।
Neeraj Agarwal
कैसा हूं मैं
कैसा हूं मैं
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
बचपन में मेरे दोस्तों के पास घड़ी नहीं थी,पर समय सबके पास था
बचपन में मेरे दोस्तों के पास घड़ी नहीं थी,पर समय सबके पास था
Ranjeet kumar patre
सनातन धर्म के पुनरुत्थान और आस्था का जन सैलाब
सनातन धर्म के पुनरुत्थान और आस्था का जन सैलाब
Sudhir srivastava
क्या कोई नई दुनिया बसा रहे हो?
क्या कोई नई दुनिया बसा रहे हो?
Jyoti Roshni
जीवन का सफर
जीवन का सफर
Sunil Maheshwari
राम लला की हो गई,
राम लला की हो गई,
sushil sarna
Extra people
Extra people
पूर्वार्थ
रामकृष्ण परमहंस
रामकृष्ण परमहंस
Indu Singh
वो जिस्म बेचती है, वैश्या कहलाती है
वो जिस्म बेचती है, वैश्या कहलाती है
Rekha khichi
"तुम्हारे नाम"
Lohit Tamta
4518.*पूर्णिका*
4518.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मुझे ‘शराफ़त’ के तराजू पर न तोला जाए
मुझे ‘शराफ़त’ के तराजू पर न तोला जाए
Keshav kishor Kumar
क़त्ल होंगे तमाम नज़रों से...!
क़त्ल होंगे तमाम नज़रों से...!
पंकज परिंदा
नीरोगी काया
नीरोगी काया
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
*बाबा लक्ष्मण दास जी की स्तुति (गीत)*
*बाबा लक्ष्मण दास जी की स्तुति (गीत)*
Ravi Prakash
औरत
औरत
MEENU SHARMA
सत्संग की ओर
सत्संग की ओर
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
फूलों की खुशबू सा है ये एहसास तेरा,
फूलों की खुशबू सा है ये एहसास तेरा,
अर्चना मुकेश मेहता
मां चंद्रघंटा
मां चंद्रघंटा
Mukesh Kumar Sonkar
"अवशेष"
Dr. Kishan tandon kranti
यक्षिणी-16
यक्षिणी-16
Dr MusafiR BaithA
कर के मजदूरी बचपन निकलता रहा
कर के मजदूरी बचपन निकलता रहा
Dr Archana Gupta
चंद्रयान
चंद्रयान
Meera Thakur
Loading...