*बादल छाये नभ में काले*
बादल छाये नभ में काले
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बादल छाये नभ में काले,
बरसे बदली छम छम द्वारे।
काली काया जल-धर सुंदर,
शोभित नभ में लगते प्यारे।
टप-टप बरसी शीतल बूँदें,
प्यासी धरती वारे न्यारे।
अंबर भू मिलने को आतुर,
शोभन – श्यामा सी भू हारे।
दिन मे रजनी छाया अंधेरा,
सूरज को ढकते छुपते तारें।
ठंठक दे समीर का झोंका,
गरमी से राहत ठरती रातें।
भरती नदियाँ बहते झरने,
नभ-चर हर्ष से नाचें गायें।
मनसीरत मेघों की गर्जन,
हर्षित सब जन झूमें सारे।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)