बात सुनो गिरधारी
**बात सुनो गिरधारी**
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मेरी बात सुनो गिरधारी।
दर-दर भटकी मैं हूँ हारी।
कोई न जाने चित्त पीड़ा,
रोक न पाऊँ लोभी कीड़ा,
यह कैसी है दुनियादारी।
मेरी बात सुनो गिरधारी।
नाच न जाने आंगन टेढ़ा,
रास्ता जाए टेढ़ा – मेढ़ा,
भटकती फिरूँ मारी-मारी।
मेरी बात सुनो गिरधारी।
राह भटकी बदल कहानी,
कर बैठी भारी नादानी,
काम ना आई होशियारी।
मेरी बात सुनो गिरधारी।
माया ठगनी ठगती जाए,
गहरी जड़ें धंसती जाए,
वश में नहीं है समझदारी।
मेरी बात सुनो गिरधारी।
मनसीरत हुई बेसहारा,
दे दो हमे तेरा सहारा,
जाऊं मैं तेरे बलिहारी।
मेरी बात सुनो गिरधारी।
मेरी बात सुनो गिरधारी।
दर-दर भटकी मैं हूँ हारी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)