बात जाति की हैं
मसला मुहब्बत की नहीं जाति की हैं
मुक्कमल होने में दूरी भी जाति की हैं
पहले पूछ लेते तो शायद दूर ही रहते
बाद जाना तो देखा मामला जाति की हैं
रंग, सूरत, सीरत खेल हैं भावनाओ का
कोई मर मिटता हैं खेल हैं अदाओं का
बहकता हैं बेज़ुबान मन भी धीरे धीरे
फिर उसे बताया जाता बात जाति की हैं