बात गरीब गुरबों की!
अपने देश में गरीबों की संख्या का सटीक आंकड़ा ही नहीं है,बस तुके में कहा जाता है कि देश में बीस बाइस करोड़ लोग गरीब हैं!दो हजार ग्यारह की जनगणना में भी इसकी पुष्टि नहीं हुई है कि कितने लोग गरीब हैं, और अब जब कोरोना महामारी ने रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है तो यह संख्या और बढ़ गई है यह सामान्य चर्चा में कहा सुना जाता है! इस आपदा काल में कितने लोग काम धाम से वंचित हुए हैं इस पर भी मतांतर बना हुआ है!
देश में कोई भी सत्ता धारी दल रहा हो वह आया तो इसी वायदे के साथ है कि देश की बेरोजगारी दूर करेंगे, गरीबी हटाएंगे, खुशहाली लाएंगे, किंतु हालात ‘ढाक के तीन पात!’ ही बने हुए हैं! गरीबों के लिए अनेकों योजनाएं बनाई गई हैं और बनाई भी जा रही हैं किन्तु वह धरातल पर काम नहीं कर पा रही हैं,इसकी वजह भी है, गांव -देहात में जो कोई योजना चलाई भी गई तो उसमें भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा है, जिसे इस योजना से लाभान्वित किया जाता था उसे भी यह एहसास करा दिया जाता रहा है कि मुफ्त में मिल रहा है, तो खाओ पियो और मौज करो! बस यह सिलसिला चल पड़ा तो फिर रुका नहीं और बढ़ता ही गया! जिस उद्देश्य से योजना का लाभ उठाया जा सकता था वह फलीभूत नहीं हुआ! गरीब-गरीब ही बना रहा और देखा देखी जो लोग समाज में ठीक ठाक थे वह भी सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए गरीबी रेखा से नीचे सामिल होने के लिए हाथ पैर चलाने लगे, और जो ध्येय था वह भटक गया!
सरकार गरीबों के लिए मुफ्त अनाज, मुफ्त इलाज, और मुफ्त शिक्षा देने के नाम पर अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए अपने दायित्वों से मुक्त हो जा रही है, जबकि होना तो यह चाहिए था कि गरीब को स्थाई रोजगार दिया जाता, ताकि वह स्वयं कमा कर अपने परिवार का पालन-पोषण करके सम्मान के साथ जीवन जी सके! लेकिन हो यह रहा है कि उन्हें मुफ्त में कुछ अनाज देकर, उनके खाते में कुछ अनुदान राशि भेज कर राजकोष तो खर्च कर रही है पर उसका प्रभाव समाज में उल्टा ही पड़ रहा है, टैक्स का भुगतान करने वाले इसे अपने साथ अन्याय के रूप में देखते हैं, तथा उन्हें हेय दृष्टि से देखते हैं!वर्ग भेद बढ रहा है, गरीब-अमीर के सामने भले ही दिखावे का सम्मान प्रकट करता दिखाई दे लेकिन समझता वह उसे शोषक वर्ग से हैं!
सरकार धन खर्च कर भी रही है और गरीबों की हालत में सुधार भी नहीं हो रहा है, तो फिर वह लीक पर ही क्यों चलना चाह रही है,क्यों नहीं वह आमूलचूल परिवर्तन करने को तैयार होती है!
आज जब सरकार ने बड़े बड़े विवादास्पद फैसले लेकर एक नई परिपाटी तैयार कर ली है तो फिर इस तरह की वह योजनाएं जो तात्कालिक लाभ के लिए शुरू की गई थी को आज भी ढोने को मजबूर है, यदि सरकार यह ठान लें कि मुझे क्या करना है तो वह उसे करके दिखा भी सकती है यह तो हमने कुछ फैसलों में देख भी लिया है, तो अब उसे गरीब पर फोकस करके योजना बना कर उसे लागू करवाने का प्रयास करना चाहिए, और वह शुरुआत करके एक युग परिवर्तन की राह खोल सकती है! समाधान यही है कि हर हाथ को काम मिले,हर नागरिक को रोजगार करने का वातावरण तैयार रहे जो नौकरी करना चाहें उन्हें नौकरी, जो कारोबार करना चाहें उन्हें उसके अनुरूप परिस्थिति मिले, जो उधोग धंधे में नाम कमाने की चाह रखते हैं उन्हें वह अवसर प्रदान कराया जाए, जो खेती बाड़ी करना चाहें उन्हें उनके फसल का उचित मूल्य मिलें, जो सरहदों पर देश की रक्षा करना चाहें उन्हें वह सम्मान प्राप्त हो, जो घरेलू सुरक्षा में जाना चाहें उन्हें वहां स्थान मिले, जो शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान देना चाहें उन्हें वहां पर नियुक्ति मिले, जो देश के लोगों को स्वास्थ्य सेवा देना चाहें उन्हें उसका अवसर मिले, ऐसे में जहां जिसकी रुचि है उसे उसमें काम करने का मौका प्रदान करते हुए नवनिर्माण की रुपरेखा तैयार की जाए तो शायद देश से यह वर्ग भेद का भाव बोध दूर किया जा सके! लेकिन ऐसा कुछ होता हुआ दिखाई नहीं देता, और तभी आज भी गरीब गुरबों की संख्या घटती बढ़ती रहती है और यह क्रम अनवरत जारी है।