बाण मां सूं अरदास
चितौड़ राय सदा सिवरूं,
थोड़ी दया दाख मावड़ी।
अवर नह दीसै आसरौ,
छत्तर छायां राख मावड़ी।।
अवगुण घणा हैं घट भीतर,
सबने बाहरै नांख मावड़ी।
अबोध बालक म्हे दुनियां में,
म्हारी पूरै थूं साख मावड़ी।।
जे भटकू कद मारगियौ तौ,
रस्ता काढ़ै लाख मावड़ी।।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया..✍️