बाग बाग इ कइसन भाई
बाग बाग इ कइसन भाई,
भाषा हमनीं समझ न पाईं।
हाथी सूँढ़ उठावे अउरी,
ओकरी आगे नाचे छउड़ी।
गीत का गावे समझ ना पाईं,
बाग बाग इ कइसन भाई।।
शुरू कइलअ अइसन लीला,
बुझलअ हमके छैल छबिला।
बुढ़ौती मे मिले बधाई,
बाग बाग इ कइसन भाई।
एक साल अब कम तू कइलअ,
एहि खातिर इयरा भइलअ।
सबके दिहलअ ईहां बताई,
बाग बाग इ कइसन भाई।
देखअ एहिसन कबो न करिहअ,
मितवन मे ना जेंवर बरिहअ।
दे तानी हम तोहे बताई,
बाग बाग इ कइसन भाई।
अब से किरीया खा लअ तुहूँ,
केहू पूछे कहीअ उहूँ।
ना तअ होई बड़ी हुँकाई,
बाग बाग इ कइसन भाई।
✍️जटाशंकर”जटा”