बांध कर प्रीत की डोरी
बांध कर प्रीत की डोरी
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बांध कर प्रीत की डोरी,उसे क्यो खोल देते हो,
पिला कर प्रेम का प्याला,उसे क्यो तोड़ देते हो।
ये कैसा प्रेम है तुम्हारा,जो मुझ पर दर्शाते हो,
पहना कर सुहाग चूड़ियां उसे क्यो मोल देते हो।।
उड़ा कर पतंग गगन में,उसे क्यो कटवा देते हो,
दिखाकर रंगीन स्वपन,उसे क्यो धूमिल कर देते हो।
ये कैसी प्रीत है तुम्हारी,जो मुझे तुम दिखाते हो,
पहना कर सुहाग का जोड़ा,फिर अकेला छोड़ देते हो।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम