बह्र – 1222-1222-122 मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन काफ़िया – आ रदीफ़ -है।
#मतला
कलम को ज़ाफरानी कर लिखा है।
मिरा किस्सा कहानी कर लिखा है।
#शेर
सलौना सा सजन है और मैं हूँ,
इश्क़ अपना रुहानी तर लिखा है।
#शेर
मुद्दतों बाद वो हमसे मिलेंगे,
जिगर रोमानियत से भर लिखा है।
#शेर
भटकते थे यूँ ही वीरानियों में,
मुसाफिर को पता मंज़िल मिला है।
#शेर
मिले हम दो किनारों की तरह से,
भँवर में डूबकर साहिल मिला है।
#गिरह
समंदर की गहन गहराइयों में,
तुम्हारा नाम पानी पर लिखा है।
#मक्ता
अदा ‘नीलम’ निराली ख़ास उसकी,
मुझे वो चांँद मह-ए-कामिल मिला है।
नीलम शर्मा ✍️
*मह-ए-कामिल -पूरा चाँद