” बहू और बेटी “
एक बार की बात है। मेरी पोस्टिंग मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में हुआ करती थी। जहां मेरा परिवार रहता था वहीं सामने एक घर था, जो भैंस पालन का कार्य करते थे। हम भी उनके यहां से ही दूध लेते थे। ज्यादातर मौहल्ले वाले दूध यहीं से लेते थे।
लगभग 3 माह बाद मैं अपने पति राज के साथ गैलरी में बैठी थी। तभी उनके पीछे वाला दरवाजा खुला और उसमें से घूंघट की हुई एक महिला झाड़ू लगाने लगी। इतने बड़े शहर में घूंघट में महिला को देखकर उसके बारे में जानने की उत्सुकता हुई।
इससे पहले हमने उसको पहले कभी नहीं देखा। उनके घर में बस दो लड़कियां ही दिखाई देती थी, जो छत पर घूमती रहती थी। वो दोनों बहनें पश्चिमी सभ्यता की मिसाल बनकर पेंट शर्ट, निक्कर में घूमती रहती थी तथा बाईक और स्कूटी पर बाजार भी आती जाती थी।
लगभग 4 महीने बाद एक दिन वह दोबारा दिखाई दी। उसको घूंघट में देखकर पता नहीं क्यों अजीब लग रहा था। एक दिन मौका देखकर मैंने उस महिला से बात की तो पता चला कि उनके घर परिवार में बहुओं को ऐसे ही घूंघट में रहना पड़ता है तथा घर की बेटियों को पूरी छूट है। बहुओं को तो समान लाने के लिए भी घर के दूसरे सदस्य पर निर्भर रहना पड़ता है।
यह सब सुनकर बहुत दुःख हुआ और साथ में अफसोस भी। कैसे आज के वैज्ञानिक युग में भी ऐसी धारणाएं पनप रही हैं। ऐसे ही एक दिन घूंघट वाली महिला की सास भतेरी से बात हुई। बातों बातों में मैंने कहा कि आप बहु को घर में कैदी की तरह क्यों रखते हो ?
उसका जवाब सुनकर तो मैं और ज्यादा हैरान हो गई। वह तपाक से बोली कि यह हमारी संस्कृति है। मैं भी नई नवेली आई थी तब घूंघट में ही रहती थी। अब बुढ़ापे में जाकर बिना परदे के बाहर निकलना संभव हुआ है। हमारी पुरानी परंपराएं हैं, जिनको हम निभा रहे हैं।
यह सब सुनकर मुझसे रहा नहीं गया तो पूछा कि आप अपनी बेटियों को तो कोचिंग पर भी भेजते हो जींस शर्ट भी पहनाते हो फिर परंपराएं बहू पर ही लागू क्यों होती हैं। उनका जवाब था कि हम अपनी बेटियों को हर खुशी देंगे।
मैने कहा कि आपकी बहू भी किसी की बेटी है और आपकी बेटियां भी किसी के घर की बहू बनेंगी। इनके ससुराल वाले इन्हें घूंघट में रखेंगे तब इनको कितनी घुटन महसूस होगी। ऐसा सुनकर वो गुस्से में आ गई और बोली कि हम अगलों से पहले ही खोल लेंगे कि हमारी बेटियां घूंघट नहीं करेंगी और नौकरी भी करेंगी।
काफी देर उनको समझाया कि इनके पिता ने भी आपके यहां बेटी यही सोचकर ब्याही थी कि बेटी की तरह रखेंगे। अब उसके दिल पर भी क्या बीत रही होगी। तब तो भतेरी वहां से चली गई, लेकिन कुछ ही दिनों बाद उनमें बदलाव दिखने शुरु हो गए। अब की बार जब वह झाड़ू लगाने बाहर आई तो घूंघट को हटा रखा था।
शुरू शुरू में तो उसे काफी शर्म आ रही थी, लेकिन धीरे धीरे वह भी मौहल्ले वालों से घुलने मिलने लगी। थोड़े ही दिनों बाद उसने नौकरी भी ज्वॉइन करली तथा अकेली बाहर भी निकलने लगी। यह सब देखकर हृदय को सुकून मिला कि समझने से किसी की जिंदगी संवार गई। आज भी वह घूंघट वाली महिला मुझे देखकर मंद मंद मुस्कुराती है, जैसे मन ही मन पिंजरे से निकालने के लिए मेरा शुक्रिया अदा कर रही हो।