बहुत सुना है न कि दर्द बाँटने से कम होता है। लेकिन, ये भी तो
बहुत सुना है न कि दर्द बाँटने से कम होता है। लेकिन, ये भी तो सुना है कि सभी से दर्द बाँटना भी नहीं चाहिए। कुछ लोग तो बड़ी कठिनता से अपनी पीड़ा किसी को बता पाते हैं। तुम अपनी पीड़ा किसी आत्मीय से ही बाँट सकते हो। वह प्रिय जो भले ही कुछ ठीक न कर सके, साथ की गर्माहट तो देता ही है।
शुष्क, सर्द रात्रि-सी वेदना में यह साथ, आग्नेय प्रतीत होता।
तपती, प्यासी दिन-सी पीड़ा पर यह साथ, मेह-सा बरसता।
किंतु, आत्मीय का भी सदा पास होना, साथ होना, कल्पना ही है। संसार साथ-साथ बैठकर तो चलता नहीं। सब कुछ पीछे छोड़कर, भूलने का उपक्रम करते हुए, काम करना, विवशता है। प्रेम सदा साथ हो सकता, प्रिय नहीं।
ऐसी स्थिति में एक ही उपाय है, निद्रा, अर्थात् सो जाना।
निद्रा से आत्मीय और मोहक, कुछ नहीं