बहुत मशरूफ जमाना है
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ना मिलने का बहाना है
बहुत मशरूफ जमाना है
इक शाम सुहानी है
नदियों की रवानी है
जगमगाते हैं जुगनू
रातों की जवानी है
बुलबुल का तराना है
बहुत मशरूफ जमाना है
आफताब का चमकना
फूलों का यूं महकना
ठंडी – ठंडी हवाएं
चिड़ियाओं का चहकना
मौसम भी ये सुहाना है
बहुत मशरूफ जमाना है
अंखियों में पानी है
चाहे राजा रानी है
दर्द अंदर छुपाए है
सबकी ये कहानी है
आंसू से दिया बुझाना है
बहुत मशरूफ जमाना है
नूर फातिमा खातून” नूरी”
जिला- कुशीनगर
उत्तर प्रदेश
मौलिक स्वरचित