बहुत चाहा हमने कि
बहुत चाहा हमने कि भूल जायें तुमको,मगर आपको हम भूला नहीं पाये।।
रहे दूर तुमसे हम इतने दिन भी, मगर दिल से दूर तुमसे रह नहीं पाये।।
बहुत चाहा हमने कि —————————-।।
मिली है सफर में हमको कई, बहुत खूबसूरत इठलाती कलियां।
चाहा उनसे कर ले यारी हम, बहुत हसीन थी यार उनकी दुनिया।।
मिला प्यार उनसे हमको बहुत, मगर हाथ उनसे हम मिला नहीं पाये।
बहुत चाहा हमने कि —————————–।।
कैसे कहें हम अब बात दिल की, आप बन चुके हो साथी किसी के।
आती नहीं होगी अब याद हमारी, आते होंगे ख्वाब तुमको उसी के।।
हमने संजोये फिर भी ख्वाब बहुत, मगर ख्वाब तुम्हारा मिटा नहीं पाये।
बहुत चाहा हमने कि —————————–।।
भूलें नहीं हम वो मुलाकात अपनी, बातें वफ़ा की वो अपनी कहानी।
लिखी थी हमने जो अपने लहू से, अपने मिलन की वो प्यारी जुबानी।।
सोचा कि हम भी बसा ले कोई घर, मगर साथी और को हम बना नहीं पाये।
बहुत चाहा हमने कि ————————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)