बहुत किस्मत वाला हूं मैं बेटी का पिता हूं
रवि और लता जीके 2 बेटियां थी
यह परिवार हंसता खेलता परिवार
पर कभी-कभी लता जी सोचती और रवि जी से कह दी कि हमें दो बेटियां हैं मैं बहुत खुश हूं पर जब कई बार लोग कह जाते हैं की यह तो दो बेटियां हैं इनका बुढ़ापा कैसा होगा यह सुनकर थोड़ा सा दिल दुखने लगता है
रवि जी अपनी बेटियों से बहुत प्यार करते हैं और लता जी को शांत करते हुए समझाया कि हमसे भाग्यशाली और खुश किस्मत कोई और हो ही नहीं सकता क्योंकि हमें ईश्वर ने दो बेटियां दी है
उनको बेटों से कम थोड़ी ना है बल्कि उन से बढ़कर ही है
हमारी बेटियां भी हमेशा खुश रहेगी और वह खुश रहेंगे तो हम हमेशा खुश रहेंगे हमें क्या फिकर करने की जरूरत है
पर घर में डिंपी के रिश्ते की बात की चर्चा होती रहती और लता जी जब भी अपनी बड़ी बेटी डिंपी के लिए उसकी शादी की बातें करती पर डिंपी कहती कि अभी मुझे जॉब करनी है मुझे अभी शादी नहीं करनी
लेकिन डिंपी के पापा उसे समझाते बेटा शादी तो करनी ही है हम तुम्हें जबरदस्ती नहीं करते तुम अपने जॉब ढूंढो मुझे कोई एतराज नहीं है पर अगर लड़का पसंद आ जाए तो मना मत करना
वह अपने पापा की बात को टाल भी ना सकी उसने हां कर दी
रवि जी के दोस्त ने उनकी बेटी के लिए एक अच्छा रिश्ता बताया लड़के का नाम मोहित और वह भी दो ही भाई थे
मोहित के मम्मी पापा भी बहुत अच्छे थे और मोहित की समझदार और स्मार्ट भी था
रवि जी की बेटी डिंपी बहुत सिंपल लड़की पर बहुत समझदार
रवि जी ने घर में सबको कह दिया था कि आज शाम डिंपी को देखने लड़के के घरवाले आने वाले हैं
लता जी ने डिंपी को शाम को रेडी होने के लिए कह दिया
हर तैयारी करते हुए पता ही नहीं चला कि कब शाम हो गई मोहित अपने माता पिता के साथ रवि जी के घर पहुंच गए
उनकी बहुत अच्छे से खातिरदारी हुई जब डिंपी को बुलाया गया तो मोहित उसे देखता ही रहा उसे वह एक ही नजर में पसंद आ गई और मोहित के माता-पिता को भी
डिंपी थी ही ऐसी डिंपी उस दिन साड़ी में थी और वह बहुत ही सुंदर लग रही थी
मोहित और डिंपी को अकेले बात करने के लिए समय दिया
डिंपी ने मोहित शुरू में ही कह दिया की मैं अपने मम्मी पापा को कभी अकेला नहीं छोड़ सकती मैं और मेरी छोटी बहन ही उनके लिए सब कुछ है
उन्होंने हमेशा हमारे लिए सब कुछ किया है अब मेरी बारी है उनके लिए कुछ करने की
मैं उनके हर सुख दुख में हमेशा साथ रहना चाहती हूं
मोहित ने कहा मुझे यही तो तुम्हारी सादगी पसंद है क्योंकि जो अपने मां बाप के बारे में इतना अच्छा सोच सकती है तो क्या वह मेरी मम्मी पापा के बारे में अच्छा नहीं सोचेगी
मुझे तुम्हारी हर बात मंजूर है और हम पति पत्नी के रिश्ते से पहले एक अच्छा दोस्त बनेंगे
यह बात सुनकर डिंपी भी मोहित को पसंद करने लगी
मोहित और डिंपी की तरफ से हां हो गई थी
मोहित और डिंपी ने इस रिश्ते को मंजूरी दे दी
मोहित के माता पिता और डिंपी के माता पिता इस रिश्ते से बहुत खुश हो गए
उन्होंने इस रिश्ते को एक छोटी सी गठबंधन में बांध दिया तुरंत ही शगुन से इस रिश्ते को पक्का कर दिया और शादी के लिए तारीख पक्की की
जाते जाते मोहित के माता पिता डिंपी के माता-पिता से बोले अब आपकी बेटी हमारी हुई वह हमारे घर बहू नहीं बेटी बनकर आएगी
कुछ 6 महीने के बाद की शादी की तारीख पक्की हो गई वह समय भी कैसे निकला पता भी ना चला
शादी की डेट फिक्स हो गई शादी की सारी तैयारियां हो गई शादी की तैयारियों में कब समय निकल गया पता भी ना चला
आज घर में बहुत रौनक थी क्योंकि आज डिंपी और मोहित के शादी की तारीख थी घर को बहुत सुंदर से सजाया गया घर में गीत संगीत चल रहा था और घर में बहुत सारे मेहमान आए हुए थे
सारे काम अच्छे से हो गए जब वरमाला का समय आया तो डिंपी लाल रंग के लहंगे में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी मोहित उसे बस देखता ही रहा उसे डिंपी से प्यार हो गया
मोहित ने अपना हाथ आगे करके डिंपी का हाथ थामा फिर उसके बाद दोनों ने एक दूसरे को वरमाला पहनाई
जब फेरों का समय आया तो डिंपी का भी दिल उदास था आंखें नम थी और रवि और लता जी ने अपनी बेटी को दुल्हन के रूप में देख बहुत खुश हो रही थी और अपनी बेटी की विदाई करने के लिए दिल भारी हो रहा था
यह सब तो करना ही था जो रीत थी वह निभाने ही थी
मोहित और डिंपी के फेरे के बाद डिंपी की विदाई का समय आया डिंपी अपने माता पिता से गले लग कर रोने लगी और लता जी अपनी बेटी को गले लगाया तो लता जी भी जोर से रोने लगी पर रवि जी अपनी बेटी को ऐसे विदा करते हुए रोते नहीं देख पा रहे थे वह थोड़ी देर के लिए एक कमरे में आ गए
जब डिंपी अपने पापा से कमरे में मिलने गई तो उसके पापा भी को गले लगा कर बहुत जोरों से रोने लगे
तभी मोहित और उसके मम्मी पापा और लता जी भी अंदर आ गए
रवि जी और डिंपी एक दूसरे को अलग ही नहीं कर पा रहे थे
तभी मोहित के मम्मी पापा ने कहा बेटा यह रीत तो निभानी है
पर तुम एक घर से दूसरे घर ही तो जा रही हो मेरे बेटी नहीं है तुम्हें मैं हमेशा बेटी बना कर रखूंगी
और डिंपी के सर पर हाथ फेरा
फिर मोहित के माता-पिता ने हाथ जोड़कर कहा समधी समधन जी आप रोइए नहीं आप अपनी बेटी को उसके घर ही तो विदा कर रहे हो
आज से आपकी बेटी हमारी हुई और हमारा बेटा आपका बेटा ही तो है
आज तो दो परिवार एक हो रहे हैं वह भी इन दो बच्चों की वजह से
आप तो अपनी बेटी को खुशी खुशी उसके घर विदा करें
डिंपी के माता पिता ने भी हाथ जोड़कर उनसे शुक्रिया कहा और अपनी बेटी की विदाई प्रीत निभाई
और कहा कि हर किसी को आप जैसे ही मां-बाप मिले और मोहित जैसा बेटा
जो किसी की बेटी को अपनी बेटी बनाकर रखें उसे अपनी बेटी की तरह प्यार करें
मैं बहुत ही किस्मत वाला हूं जो मुझे दो बेटियां हैं
और अब तो बेटियों के साथ मुझे अब एक बेटा भी मिल गया
मुझसे किस्मत वाला तो कोई और हो ही नहीं सकता ।
मोहित ने डिंपी का हाथ थामा हुआ था और डिंपी के माता-पिता ने प्यार के साथ और खुशी खुशी अपनी बेटी को विदा किया।
** नीतू गुप्ता