बहुत अच्छे लगते ( गीतिका )
वृक्ष पर्वत नद नदी निर्झर बहुत अच्छे लगे
कोकिला कंठी भरे जब स्वर बहुत अच्छे लगे ।
शिव बसे काशी सदा से बोल बम जयकार है
मोहते मन भक्त का नटवर बहुत अच्छे लगे ।
ताप देते रात दिन जब घेर बादल ने लिया
तब उगे ठंडे गगन भास्कर बहुत अच्छे लगे ।
कुछ नहीं कहतीं अधर से बस चलाती हैं छुरी
प्रीति से भींगे नयन खंजर बहुत अच्छे लगे ।
कंकरीटों के महल की कैद से बाहर निकल
फूस वाले गाँव के छप्पर बहुत अच्छे लगे ।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी ©®