बहुजन होकर बिखरे क्यों भाई
पढ़े-लिखे नादानों क्यूं तुम फूले-फूले फिरते हो
भूले क्यूं तुम युग-पुरुष को भूले-भूले फिरते हो
शिक्षित होकर बाबा की शिक्षा से करते किनारा क्यों
भूल गये नादानी अपनी अपनों से करते किनारा क्यों
तुम बिखर गये तो बिफ़र पड़ोगे खोवोगे जीवन यूं
क्यूं-क्यूं मैं पूछूं तुमसे क्यूं अपनों से तुम बिछड़े यूं
भोले बनते ओरों के आगे अपनों से चतुराई क्यूं
बोलो भाई बाबा ने भेंस के आगे बीन बजाई क्यूं
संगठन-बिन शिक्षा काम ना आये मेरे भाई
संघर्ष करोगे किससे कैसे तुम ओ मेरे भाई
राई-राई की ख़बर रहेगी फूट डालेगी कैसे ताई
बहुजन होकर बिखरे तो खो-दोगे खरी कमाई
भीम-भीम तुम कहते हो भीम लक्ष्य हमारा भाई
आपस तुम छोड़ो फूट कालकूट की पी- लो घूंट
मर जाओगे अमर रहोगे बन बहुजन की प्रीत
गायेंगे सब बहुजन मिल अमर-अमरता- गीत
संगठन पहले शिक्षा फिर, फिर संघर्ष करो
शिक्षा सबल हथियार मिलजुल संघर्ष करो
फूट पड़ी जो आपस मे भाई राई-राई बिखरोगे
फूट-फूट रोवोगे फिर जो पाई-पाई को बिफरोगे
बन बैठे तुम राजनेता खो दिया क्या अपना चेता
हक बहुजन-खाते तुम चुन लिया जो अपना नेता
समय बहुत है थोड़ा समझो सीख ‘मधुप’ की भाई
मेरे शब्द कहते हैं बहुजन होकर बिखरे क्यों भाई ।।
मधुप बैरागी