” बहिरा नाचे अपने ताले “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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बड्ड नचेलहुँ हमरा ! इ नहि करु ,वो नहि करू ,उम्हर नहि जाऊ ,इ पहिरू ,हिनका प्रणाम करू ,इ स्कूल मे नहि ओ स्कूल मे पढू ! देखू आहाँ केँ इ विषय नीक रहत ! जीवन बेकार भेल छल ! इच्छा नहि रहितो गप्प मानय पड़ैत छल ! आब जहिया सँ गूगल सँ संग भेल हम पूर्णतः बहिर भ गेल छी ! ” बहिरा नाचे अपने ताले ” त कहबी अछि ! हम बहिर क्या हेब मुदा जहिया सँ इ स्मार्ट फोन हाथ मे आबि गेल आ लैपटॉप क संग भेल बुझू अपने ताले नचैत छी ! दुनू कान मे दिनभरि ठेपी लगेने रहित छी ! आब बजैत रहू हमरा एहि सँ मतलब की ? कखनो फ़ोन पर लागल छी ! कखनो व्हाटप्प पर ! हम विडिओ कालिंग मे लागल छी त लागल छी ! वो कोनो वस्त्र मे होथि ,कोनो अवस्था मे रहथु हम हुनका सँ घंटो घंटा विडिओ कॉल करैत छियनि ! हमरा नहि लाज धाख तम्बाकू ,पान गालोठने रहैत छी आ कखनो त वस्त्र रहित रहितो गप करैत छियनि ! कियो पैघ छथि त अप्पन घरे रहथू हम त ओझाइन पर सूति केँ गप्प करब !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
दुमका