बहारें तो आज भी आती हैं
रौनक़ें बहार तो हमारे आँगन
की भी कम ना थीं , चर्चा में तो हम
हमेशा से रहते थे
“बहारें तो आज भी आती हैं
वृक्षों की डालों पर पड़ जाते है झूले ,
झूलों पर बैठ सखियाँ हँसी -ख़ुशी के
गीत जब गाती हैं , लतायें भी अँगड़ायी
लेकर इतराती हैं।
आँगन भी है ,
क्यारियाँ भी हैं
हरियाली की भी ख़ूब बहार है
पर मेरे आँगन के पुष्पों ने
अपनी -अपनी अलग -अलग
क्यारियाँ बना ली हैं।
वो जो पुष्प मेरे आँगन की रौनक़ थे
वो आज किसी और आँगन की शोभा
बड़ा रहे हैं , अपनी महक से सबको लुभा रहे हैं।
कभी -कभी उदास बहुत उदास हो जाता हूँ पर फिर जब दूर से मुस्कुराते देखता हूँ
अपने पुष्पों को तो ,ख़ुश हो जाता हूँ
आख़िर उनकी भी तो चाह है
अपनी दुनियाँ बसाने की
ख़्वाब सजाने की
चलो उन्हें भी तो अपनी दुनियाँ बसाने का हक़ दो
दूर से ही सही ,
अपने पुष्पों को मुस्करता देख
मीठे दर्द की दवा ढूँढ लेता हूँ
जीने की वजह ढूँढ लेता हूँ ।