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23 Dec 2020 · 1 min read

बहला जाती हो

शांत सुरमयी सांझ मन्त्र मुग्ध हो जब मुस्कराती है
तुम नदिया के तीरे आ कर , मन मेरा बहला
जाती हो

जब चलती मन्द पवन , ताल घुघरुओं की आती है
हाथों में हाथ पकडे दूर , जहां को हम छोड जाते है
विधु आगोश में ले धरा को , राग प्रेम का तुम गाती हो
अपने केशों की छांव मे ले , स्वप्न लोक ले जाती हो

जब निकुंजों में लहराए लतिकाए, कोकिल कूंजन करती है
भंवरे नित आकर पुष्प रस चूँसे , आलिंगन कलियों करती है
ऐसे आना तेरा मन को मेरे , न जिने क्यों छूँ जाता है
तान वितान अपनी प्रीती का , मौन भाव कह जाती हो

Language: Hindi
Tag: गीत
74 Likes · 2 Comments · 643 Views
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