बहती गंगा सदा ही मेरे पास है
बहती गंगा सदा ही मेरे पास है
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खोजते हैं वो टूटे सितारे कहीं
बंद मुट्ठी में मेरे तो आकाश है,
क्या करूंगी उफनते समंदर का मैं
बहती गंगा सदा ही मेरे पास है।
खो गई हूँ कहीं कहते हैं अब सभी
हर जर्रे से आती है खुशबू वही
मेरे मन की सुगन्धी मुझे है मिली
मुझको खुद से मिलन की लगी आस है।
खोजते हैं वो टूटे सितारे कहीं
बंद मुट्ठी में मेरे तो आकाश है,
क्या करूंगी उफनते समंदर का मैं
बहती गंगा सदा ही मेरे पास है।
निंदिया आए मुझे सुनूँ जब कहानी
पीर सो जाए दिल की छुपी वो पुरानी ,
हकीकत मिली है खयालों से जब से,
गुफ्तगू की है दिखती अलग बात है।
खोजते हैं वो टूटे सितारे कहीं
बंद मुट्ठी में मेरे तो आकाश है,
क्या करूंगी उफनते समंदर का मैं
बहती गंगा सदा ही मेरे पास है।
कितने भावों को लेकर मैं मंदिर गई
देव देखे मुझे नयनों से कई,
हूं सराबोर मैं प्रेम में भीग कर
सब तरफ प्रेम की ही तो बरसात है ।
खोजते हैं वो टूटे सितारे कहीं
बंद मुट्ठी में मेरे तो आकाश है,
क्या करूंगी उफनते समंदर का मैं
बहती गंगा सदा ही मेरे पास है।
फूल चुनती रही बगिया में कई
सामने जो गई तो चढ़ाया नहीं
दिल से दिल जो मिले दिल्लगी हो गई,
आज पूजा हुई कुछ अजब खास है।
खोजते हैं वो टूटे सितारे कहीं
बंद मुट्ठी में मेरे तो आकाश है,
क्या करूंगी उफनते समंदर का मैं
बहती गंगा सदा ही मेरे पास है।
फेर लेते थे मिलते ही मुंह वे कभी
आज मिलते ही पूछें मेरा हाल है,
हंस कर बुलाती है आशा की किरण
मुझको आशीष देते महाकाल है।
जन्मों के दुश्मन बगल में खड़े
आज सारे ही देखो मेरे साथ हैं।
खोजते हैं वो टूटे सितारे कहीं
बंद मुट्ठी में मेरे तो आकाश है,
क्या करूंगी उफनते समंदर का मैं
बहती गंगा सदा ही मेरे पास है।
~माधुरी महाकाश
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