बहकते हैं
बहकते हैं
हर रोज़ ये कदम,
तुम्हारे पास आने के लिए,
न जानें कितने फासले,
अभी तय करने हैं
तुम्हें पाने के लिए….
बस इसी तरह
सोचा किए थे हम
अब, तुमसे मिलने
तुमसे बतियाने
की चाहत ही बाकी न रही
न अब दर्द है, न निशाँ मोहब्बत के
उजाड़ दिया है आशियां हमने
ख़ुद अपने हाथों से
तुम रहो सलामत, हम ख़ुश हैं
अपनी ख़ुदी में
हिमांशु Kulshrestha