बस यूं बहक जाते हैं तुझे हर-सम्त देखकर, बस यूं बहक जाते हैं तुझे हर-सम्त देखकर, रोज़-ब-रोज़ मेहताब नज़र कहां आता है ©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”