बस माटी के लिए
#दिनांक:-11/9/2023
#शीर्षक:-बस माटी के लिए!
मोह माया व्याप्त चहुँ ओर ,
ना दिखता कहीं ठौर,
सुन्दर रूप रंग !
नहीं टिकता मेरे भैया,
मिल जाएगा मिट्टी में एक रोज ,
चलता फिरता सुन्दर तन-मन ,
सबको अच्छा लगता है ।
वहीं मृत्युपरान्त,
लोग स्पर्श से भागते हैं!
जिस तन पर मॅडराते रहे ,
एक घन्टा साथ में क्या रखा?
उसी तन पर उबकाई आने लगी!
जीवन भर मदमस्त रहा ,
यह तेरा वह मेरा करता रहा,
सद्गुण अपनाया नहीं,
सद्कर्म किया नहीं,
ना प्रभु का स्मरण किया,
बस आपस में लड़ता रहा ,
अंधा होकर चलता रहा ,
सुन्दर काया पर मरता रहा ,
हवसी बन दरिन्दगी करता रहा…।
अब कुछ ना होगा तेरा ,
मिट्टी से जन्म,
मिट्टी हो गया शरीर तेरा ,
माटी की परिपाटी,
ना कभी पढ़ी तूने,
बस माटी के लिए!
रे मानव
झगड़ता रहा।
रचना मौलिक, अप्रकाशित, स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित है।
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई