***बस तू ही तू***
तू
दिल,
दिमाग,
विलोचन,
सब जगह
नजर आती है।
तू
चैन,
चमक,
मनोरथ,
सब आराम
उडा ले जाती है।
तू
नींद ,
चेतना,
चपलता,
सब आवेग
चुरा ले जाती है।
तू
जान,
जहान,
मकसद,
सबकुछ ही
जान पडती है।
©®तूलिकार
प्रदीप कुमार “निश्छल