बसर
वही जिंदगी की बसर जानते हैं।
सजा सेज धरती फलक तानते है।।
खिज्र रौनकों से अब संवर जायेंगे।
सांझ के बाद आता सहर जानते हैं।।
गीत उनके जहां में तराना बने।
वही अपने सिर पे कफन बांधते हैं ।।
गुले गुलजार अब बगवां हो गए।
खुशबू तेरे बदन की सभी जानते हैं।।
मेरी उल्फत को पहचान ले ओ हंसी।
तुम हमें जान लो हम तुम्हे जानते हैं।।
गम में बसर हो या खुशियों का आलम।
है मरजी खुदा की ये सब मानते हैं।
उमेश मेहरा
गाडरवारा (एम पी)
9479611151