बस,अब और नहीं(लघुकथा)
बस,अब और नहीं
पायल का बलात्कार हुए दो महीने बीत चुके हैं। पुलिस ,कोर्ट-कचहरी का मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया है। पायल के माता-पिता दिल पर पत्थर रखकर अपने रोजमर्रा की जिन्दगी में लगने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन पायल जिसके जिंदगी में धुआं ही धुआं है वह जिंदा लाश बनकर जी रही है। ये वही पायल है जो जिंदादिल हंसमुख स्वभाव की लड़की थी उसने अखबारों,टी॰ वी॰ में बलात्कार के मामले पढ़े थे और आऽऽऽऽ जऽऽऽऽ। आंखों में आंसू भी जाने कब के सूख गए थे। उसके माता-पिता , रिश्तेदार ,दोस्त कोई भी उसे उबार न पाया। एक दिन रिटायर मनोचिकित्सिका जो खुद कभी बलात्कार की शिकार हो चुकी थी पड़ोस में अपनी बहन से मिलने आई हुई थी उन्हें जब पायल के बारे में पता चला तो वो पायल से मिली और उन्होंने उसमें नई जिंदगी जीने का उमंग भर दिया। पायल ने खुद को सहेजा और प्रण लिया”बस,अब और नहीं”।
नूरफातिमा खातून “नूरी”