बसंत
आज तुम्हारे आने से
साकार हो गए फागुन के रंग
वीरान और ऊसर आने से तुम्हारे
हो गए उपवन की बाहार
अमराइयां देने लगी आमंत्रण
भंवरों के सुनाई दिए गुंजार
टेसू की पीली चादर
ओढ़ ली ढलानों ने
रंग बिरंगी तितलियां के संग
उड़ते परागकण
पलाश की ओढ़ लाल चुनरिया
दुल्हन बनी दूर-दूर तक मनोहारी वनस्थली
सरसों फूली शर्माई ,अलसी झुकी-झूमी इतराई
सुग्गे की टेर बेंधती अमराई
पिक ने छेड़ दी मनछुई मधुर तान
आज तुम्हारे आने से
इंद्रधनुषी हुई दिशाएं
खिल उठे मखमली खलियान।