बसंत
विधा-दिगपाल छंद
मापिनी-221 2122 221 2122
देखो वसंत आया,देखो वसंत आया।
आनंद संग लाया,शोभा अनंत लाया।
जब बैठ आम डाली,कोयल चकोर बोले।
हर एक चेतना में, वो प्रेम राग घोले।
हर डाल-डाल झूमे,मस्ती बयार में है।
बहती हवा दिवानी,खुश्बू कछार में है।
मन में उमंग लाया,हेमंत अंत आया।
देखो वसंत आया, देखो वसंत आया।
महकी हुई धरा है,रस फूल-फूल भीने।
गजरे सजे हुए हैं,जो गूँथ दी किसी ने।
भौरें कली कली पे,नव गीत प्रीत गाया।
फूली कली निराली,नैना सुवास पाया।
जल में तरंग लाया, जैसे असंत आया।
देखो वसंत आया ,देखो वसंत आया।
ले रंग राग कोई, रस घोल-सी रही है।
मधु पुष्प से न छीने,यह रात चोर-सी है।
पहनी हुई धरा है, धानी सुहाग जोड़ा।
देखो बहार छाई,पीयूष सत्य थोड़ा।
मौसम मचल रहा है,घर संत कंत आया।
देखो वसंत आया, देखो वसंत आया।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली