बसंत गीत
मलय वात पिक संग लिए
मधुमास आ गया।
ठिठुर रहीं थी बूढ़ी दादी
कम्बल ओढ़ें
खेल रहीं बूढ़े दादा के संग में होली
बृद्वाबस्था में तरूणी सा
भाव पा लिया।
मलय वात पिक संग लिए—–
फसल खड़ी थी
स्थिरिता की चादर ओढ़े
सरसों के योवन पर अब
श्रंगार छा गया।
मलय वात पिक संग लिए—–
बच्चों का कलरव गुमसुम था
कैदी जैसा
खेल रहे हैं रज को अपने
अंग लपेटे
नभ ने नव नीला फिर से
परिधान पा लिया।
मलय वात पिक संग लिए—–