बसंत गीत
मदन बन बाग आया
पिक प्रिया साथ लाया।
पिक मिलन गीत गाती
पथिक का मन बहलाती।
सुगन्धित पवन बह रही
हृदय में प्रणय भर रही।
आम्र नवगात पाया
मदन बन बाग आया।—
खेत खड़ी फूली सरसों
जैसे तरसी हो बर्षों ।
बूढ़ा पीपल तरुण हुआ
मानो काया कल्प हुआ।
कंटकों से निर्मित है तन
प्रफुल्लित नागफनी का मन।
पाकर पात लगे हंसने
मुझसे आज लगे कहने।
धरा पर फाग छाया
मदन बन बाग आया।—–
ईर्ष्या, घृणा, द्वेष न कर
जाति-पाति का भेद न कर।
भगवा रंग मे रंग के लोगों।
भंग विजय की पी लो।
धाम त्योहार आया
दोगुना जोश लाया।
मदन बन बाग आया।—
स्वरचित
रमेश त्रिवेदी
कवि एवं कहानीकार
यह गीत समाचार पत्र दैनिक प्रतिपल मे प्रकाशित हो चुका है ।