बसंत गीत
लो आया है फिर से बसंत।
खुशियाँ होंगी फिर से अनंत।
फिर रंगों की होली होगी,
फिर बादल लाल लाल होंगे।
फिर ‘धनियां’ खुशी मनायेगी,
फिर से गांवों मे्ं फाग होंगे।
फिर हर गरीब की थाली में,
फसलें लायेंगी सुख अनंत।
कोयलिया फिर से कूकेगी,
फिर मोर बाग में नाचेगा।
फिर से अमराई फूलेगी,
फिर से जन गन मन महकेगा।
फिर से बिरहन भी तड़पेगी,
अजहूं न आये मेरे कंत।
कलियाँ मुस्काती मंद मंद।
वायु संग आती विविध गंध,
फिर यौवन ने अंगड़ाई ली,
तनहाई का हो गया अंत।
फूलों पर फिर मुस्कान खिली,
महका घर आंगन दिग दिगंत।
भौंरे फिर गुन गुन गायेंगे,
मधुकण लेने फिर आयेंगे।
कुछ कैद भी् होंगे फूलों में,
कुछ मधु लेकर उड़ जायेंगे।
‘प्रेमी’ मन फिर से जागेगा,
जो पतझड़ में हो गया संत।
लो आया है फिर से बसंत..।।।
……..✍ सत्य कुमार ‘प्रेमी’