बसंत का मौसम
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बसंत का मौसम है
और बागों में बहार है
यौवन की मदमस्त
आँखों में खुमार है
फूलों के चेहरे पे
मुस्काह्ट आई है
किसी देवकन्या ने
ज्यूं ली अंगड़ाई है
ठंडी समीर से
पत्ते जो हिलते हैं
लगता है ऐसे ज्यूं
बिछुड़े दिल मिलते हैं
टकराती हैं टहनियां
आपस में ऐसे
मिलते हैं बिछुड़े प्रेमी
बरसों बाद जैसे
रातों में चंदा की
चांदनी यूं बरसे है
कि ठंडी हों आंखें
जो बरसों से तरसे हैं
रातों को चंदा जो
लुक-चिप सी करता है
झीने-झीने पर्दों में ज्यूं
यौवन थिरकता है
मासूम मुखड़ों पे
लाली यूं छाई है
कि परियों की सुन्दरता
ज्यूं यहीं सिमट आई है
सेब जैसे गालों पे
मन मदहोश हुआ जाता है
सूनी काली रातों में
याद कोई आता है
भीगी-भीगी पलकों से
इंतज़ार करते हैं
कैसे समझाएं तुन्हें
कि तुझसे प्यार करते हैं