बसंत ऋतु
मनहरण घनाक्षरी – बसंत ऋतु
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पिया मिलन को चली,
हर्षित मन होकर ।
साजन को देख-देख,
मन हर्षावत है।
फूल फल कली कली,
खिले सभी कुंज गली।
मन हुआ मनचला ,
बसंत सुभात हैं।
माघ के बसंत ऋतु,
मन मन रीझे हेतु।
विद्या देवी माँ हमको,
कृपा बरसात हैं।
ज्ञान घन हँस वाही,
पुस्तक वीणा धारिणी।
हे माँ वरदान दे दो,
ध्यान को लगात हैं।
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रचनाकार – डिजेन्द्र कुर्रे“कोहिनूर”
पीपरभवना,बलौदाबाजार (छ.ग.)
मो. 8120587822