बलिदानी सैनिक की कामना (गीत)
बलिदानी सैनिक की कामना (गीत)
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एक रात जब एक वीर सैनिक सपने में आया
मैंने उसको कर प्रणाम, फिर अपना शीश
झुकाया
(1)
कहा देश पर अमर वीर बलिदानी आप
कहाते
धन्य-धन्य स्मरण आपको करके हम हो जाते
सदा देश बलिदान आपका, युग-युग तक
गाएगा
मेले लगते सदा रहेंगे, जब अवसर आएगा
श्रेष्ठ आप की बलिदानी, युग-युग जीवित है
गाथा
इस गाथा से सदा हिन्द का, होगा ऊँचा माथा
हमें गर्व है श्रेष्ठ आपने, निज कर्तव्य निभाया
(2)
सैनिक बोला “मुझे खेद है, मेरी आत्मा रोती
वीरों की क्या मृत्यु इस तरह, बस के अंदर
होती ?
मरने का डर नहीं मुझे, घर का दुख नहीं
सताता
मुझे ख्याल कब माँ-बाबा-बेटा-बेटी का आता ?
दुख यह नहीं मुझे है, पत्नी पर अब क्या बीतेगी
समर गृहस्थी का कैसे वह इस जग में
जीतेगी ?
दुख का मैंने अब तक अपने, भीतर अंत न पाया
(3)
मुझे खेद है मेरा यह, जीवन कुछ काम न
आया
बैठे-बैठे अरे व्यर्थ ही, मैंने प्राण गँवाया
काश ! युद्ध में मैंने भी, होती बंदूक उठाई
काश ! वीरगति लड़ते-लड़ते, कहता मैंने पाई
यह मेरा बलिदान बड़ा, होता यदि मै टकराता
मॉं का कर्ज उतर जाता, यदि मैं दो-चार
गिराता
कष्ट यही है शत्रु हाथ से, मैं कुछ मार न पाया
(4)
खेद! कायरों जैसी हरकत, दुश्मन ने
दिखलाई
वीर सामने से आते हैं, उसने पीठ दिखाई
चेहरा छिपा लड़ा जो छल से, उसे वीर क्या
कहना ?
मेरा क्या था! मुझे वीरगति- धारा में था
बहना
जन्म लिया तो यही कामना है फिर भारत
पाऊॅं
लड़ूँ देश के लिए वीरगति पाकर मैं फिर
जाऊॅं
मेरी ऑंखों में बस मेरा, हिंदुस्तान समाया
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451