बलात्कार
घाव शरीर पर होते हैं
असर मन और आत्मा पर
कलम भी सहम जाती है
कैसे लिखूं बलात्कार पर
कोई क्रूरता की भेंट चढ़ता है
तो कोई धोखे का शिकार होता है
जो भी होता है हर ऐसी कहानी में
एक मानसिक बीमार होता है
छीन लेती है ज़िंदगी किसी की
किसी के चंद लम्हों की अय्याशी
सहम जाता है हर अच्छा इंसान
देखता है फिर कैसे वो अविनाशी
इंसान कैसे हैवान बन जाता है
दो पल में ही शैतान बन जाता है
नहीं दिखता फिर कुछ भी उसे
हवस का ये कैसा नशा छा जाता है
क्या बितती होगी उस नारी पर
जब भेड़िए उस पर टूटते होंगे
कैसे इतने क्रूर हो जाते हैं वो
अस्मत उस नारी की जब लूटते होंगे
है इंसान और जानवर दोनों
हमारे ही अंदर, जाने मनाता कब कौन जश्न है
कैसे मार पाएंगे इस जानवर को
यही इस समय का सबसे बड़ा प्रश्न है