बलात्कार जैसे अपराध को कैसे रोका जाये
एक समय था जब हमारे देश में नारियों की पूजा होती थी…. उन्हें देवी- स्वरूप समझा जाता था…. समाज में उनको उचित सम्मान प्राप्त था …. कहा भी गया है….. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता: …. लेकिन आज इन उक्तियाँ के अर्थ बदल गये हैं । आज भी हमारे यहाँ देवियों को पूजा जाता है… पर यह सोच सिर्फ़ देवालयों तक सीमित रह गई है …. अन्यथा आज नारी… चाहे वह प्रौढ़ हो, किशोरी युवती या अबोध बालिका…. कुत्सित मानसिकता वाले लोगों के लिये वह सिर्फ़ भोग्या है… इससे ज़्यादा कुछ नहीं ।
बलात्कार जैसा जघन्य अपराध आज हमारे देश में ज्वलन्त समस्या बन गया है । आये दिन दूरदर्शन, समाचार पत्र या सोशल मीडिया … ऐसी हैवानियत की हदों रो पार कर जाने वाली ख़बरों से भरे रहते हैं …… न्यूज़ चैनलों पर ऐसी घटनायें सारे दिन दिखाई जाती हैं… जिन्हें देख रूह काँप उठती है व मन सोचने को मजबूर हो जाता है कि हमारे ही समाज के लोग किस मानसिक विकृति के शिकार होते जा रहे हैं? हम विकास की राह पर नहीं अपितु पतन के गर्त में गिरते जा रहे हैं । आज के लोग इतने दिग्भ्रमित क्यों होते जा रहे हैं….. अपराधी वृति के समर्थक होते जा रहे हैं…..दिन दहाड़े अबोध बालिका को बरगलाता एकांत में अपना उल्लू सीधा करना …. जैसे रोंगटे खड़े कर देने वाले हादसे ….. किस मानसिकता की तरफ़ इशारा कर रहे हैं….. महानगरों में सरेआम किसी भी महिला या किशोरी के साथ दुर्व्यवहार आम बात हो गई है…. देख- सुनकर इंसानियत का सिर शर्म से झुक जाता है….. लगता है आज मानवता तार- तार हो गई है । ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वासे क्यों नहीं अपने गिरेबान में झाँककर देखते । हमने ऐसे दिनों कीशायद कभी कल्पना भी नहीं की थी ।
आज ऐसी लोमहर्षक घटनाओं पर मीडिया हो हल्ला कर चर्चा बैठा देता है….. सामाजिक संस्थानों व जनसाधारण दो- चार दिन मोमबत्ती जलाकर या रैलियाँ निकालकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं पर समस्या का समाधान कोई नहीं सोचता । कदाचित् राजनीतिक हस्तियाँ घड़ियालों आँसू बहाने पहुँच जाते हैं पर स्थायी हल किसी के पास नहीं । आज का पुरूष वर्ग…. चाहे वह प्रौढ़ हो , किशोर या नाबालिग…. अधिकांश लोग आपराधिक मनोवृत्ति का शिकार क्यों हो रहे हैं…. क्यों दिग्भ्रमित हो रहे हैं…… इस प्रश्न का हल किसी के पास नहीं ….इन कुकृत्यों को रोकने में असमर्थ पाने पर कभी- कभी तो आत्मग्लानि महसूस होने लगती है ।
बलात्कार जैसे कुकृत्यों को रोकने के लिये हमें अपने घरों से ही पहल करनी होगी । बच्चों को संस्कारी, विवेकशील व मर्यादित बनाना होगा…. उनको सुशिक्षा के साथ- साथ हमारी संस्कृति से परिचित करना होगा । नारी जाति को सम्मान देना सिखाना होगा । उन्हें विस्तारपूर्वक बताना होगा कि हर नारी में एक माँ , बहन, बेटी छिपी होती है…. दूसरों की बहनों या लड़कियों की भी अस्मिता सुरक्षित रखने का ख्याल मन में हर पल होना होगा । साथ ही सरकार को सोशल मीडिया पर भी शिकंजा कसना होगा ….. जितनी भी अश्लील वेबसाइट्स, या वीडियो पर क़ानून बनाकर रोक लगानी होगी क्योंकि विकृत मानसिकता उत्पन्न करने में संचार क्रांति का भी सहयोग है । माता- पिता को चाहिये १५ साल से कम उम्र के बच्चों के हाथ में मोबाइल न दें…. किशोर बच्चों को देना भी पड़े तो समय- समय पर उसके मोबाइल की जाँच करते रहना चाहिये । उसके दोस्तों व संगति पर भी नज़र रखें …. ध्यान रखें बच्चा किस दिशा की ओर उन्मुख हो रहा
अब बात प्रशासन व सरकार की की जाये…. जिससे युवा व प्रौढ़ अपराधियों को किस तरह गिरफ़्त में लाया जाये ।ऐसे घिनौना दुष्कर्म करने वालों के लिये सरकार को शीघ्रातिशीघ्र कठोरता क़ानूनों का प्रावधान रखना चाहिये । कई बार ऐसे लोगों के पकड़े जाने पर आरोप सिद्ध नहीं होता या फिर सरकारी दबाव के चलते अपराधी को बाइज़्ज़त बरी कर दिया जाता है.. फलस्वरूप गुनाहों की पुनरावृत्ति होते देर नहीं लगती । ऐसे नरपिशाचों को तो सरेआम फाँसी पर लटका देना चाहिये ….. या फिर बीच चौराहे पर लहूलुहान कर अंग भंग कर आजीवन तड़पने के लिये छोड़. देना चाहिये जिससे उसे भी अहसास तो हो कि उन मासूमों पर क्या गुज़रती है जो इस काली करतूत की शिकार हैं। साथ ही ऐसे लोगों को समाज नव घर ले निष्कासित कर सड़कों पर तड़पने के लिसे छोड़ देना चाहिये । सामाजिक संगठनों को भी क़ानून हाथ में ले ऐसे गुनहगारों को जल्द से जल्द सज़ा दिलवाना चाहिये क्योंकि न्यायपालिका में तो गुनाह सिद्ध होने में ही वर्षों लग जाते है… तक कब भुक्तभोगियों के लिये बहुत देर हो चुकी होती है । अन्यथा बलात्कार जैसे अपराध दिन ब दिन बढ़ते जायेंगे एवं आम आदमी हाथ पर हाथ धरे बैठा रह जायेगा…… ये समाज में फैलता ऐसा नासूर है जिसका यथाशीघ्र निदान बहुत आवश्यक है…….
मंजु बंसल “ मुक्ता मधुश्री “
जोरहाट
( मौलिक व प्रकाशनार्थ )