बर्षो बीते पर भी मन से,
बर्षो बीते पर भी मन से,
गया न कविता-गीत ।
अब भी कानों में घुलते रहते,
मादक-मोहक संगीत ।।
सारी हेकड़ी निकल गई,
और हो गए चारों खाने चित ।।।
अब तो मान दिल-ए-नादान,
जब हो गया सेवा निवृत ।।।।
बर्षो बीते पर भी मन से,
गया न कविता-गीत ।
अब भी कानों में घुलते रहते,
मादक-मोहक संगीत ।।
सारी हेकड़ी निकल गई,
और हो गए चारों खाने चित ।।।
अब तो मान दिल-ए-नादान,
जब हो गया सेवा निवृत ।।।।