“बरसात” ️
बरस ही गये न तुम ! ☔
और कसम से क्या बरसे…☔….तेज भी धीरे भी शीतल भी खुबसूरत भी
आभास था हमें…आखिर रूख्सत ऐसे तो नहीं करोगे तुम !
कहने को तुम सब मिटा देते हो पर सच तो ये है तुम वो हो जो धूल हटाते हो और रुबरु कराते हो कुदरत के असली रंग से,
जिसमें संगीत है और ठहराव भी,
असली रंग…जब बेचैन पत्ते फुल डाली ईंट मिट्टी को सराबोर कर जाते हो तुम !
जान तो जान बेजान की जिंदगी में भी सांस भर आते हो तुम !
तुम सिर्फ बारिश नहीं हो
प्यास हो धरती की, प्यास हो आस की, प्यास हो विश्वास की,
प्यास हो हर उस बात की जो तुम्हारा इंतज़ार करते हैं
दरिया में एक शाम के लिये……
भिंगोते हैं खुद को तुम्हारे समंदर में और जी उठते हैं फिर से ईकबार……
© दामिनी